स्वतंत्रता संग्राम मेंं भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुहम्मदाबाद तहसील मुख्यालय पर तिरंगा फहराने के समय 18 अगस्त 1942 को शहीद हुए शेरपुर के जांबाजों की वीर गाथा भला किसे नहीं याद होगी। आठ जवानों का बलिदान लेने के बाद भी अंग्रेजों का अत्याचार यही नहीं रुका, उन्होंने उन शहीदों के दशगात्र (दसवां) के दिन 29 अगस्त को शेरपुर गांव में जमकर खूनी खेल खेला और तांडव मचाया। इसे याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं।
शेरपुर के वीर जवानों की वीरता और त्याग ने अंग्रेज प्रशासन की नींद हराम कर दिया था। अंग्रेजी हुक्मरान अब शेरपुर को चैन से रहने देना नहीं चाह रहे थे। 18 अगस्त 1942 को तहसील मुख्यालय पर तिरंगा फहराने में शेरपुर के जिन आठ सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, उनका दशगात्र (दसवां) 29 अगस्त को था। इस दिन गांव में शहीदों के परिजनों व सगे संबंधियों द्वारा क्षौर कर्म व पिंडदान क्रिया की जा रही थी । अंग्रेज हुक्मरानों के आदेश पर शेरपुर में अंग्रेजों की (बलूची) फौज आ पहुंची बाढ़ का समय था। कलेक्टर मुनरो तथा पुलिस अधिकारी हार्डी बोट के सहारे गांव के पूर्वी छोर स्थित एक दरवाजे पर बैठ गये और अंग्रेजी फौज हाथों में गांव का नक्शा लेकर लूटपाट तथा हत्या का तांडव शुरू कर दिया।
इस दौरान गांव के कुछ लोगों को नाव से भागड़ पार करा रहे खेदन यादव को अंग्रेजी फौज ने गोलियों से शहीद कर दिया। राधिका देवी पत्नी गिरगिट पांडेय को भी अंग्रेजी फौज ने शहीद कर दिया। अंग्रेजी फौज को देखते ही गांव के रमाशंकर लाल पर देशभक्ति का जुनून जोर पकड़ लिया और जोर-जोर से देशभक्ति और अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाने लगे। अंग्रेजी फौज के सिपाहियों ने उनपर भी गोलियां बरसा दीं, जिससे भारत मां के जाबांज सपूत रमाशंकर लाल भी अपने प्राणों का बलिदान कर देश की आन बान और सम्मान में प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीदों में शामिल हो गये।