गाजीपुर: श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत तरीके से नाग देवता की धूमधाम से पूजा की गई। यह पर्व प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति श्रद्धा का पर्व है जो हमें सह-अस्तित्व और करुणा का संदेश देता है। इस अवसर पर घरों में लोगों ने नाग देवता को दूध लावा चढ़ा कर पूजन किया। आमतौर पर नागपंचमी से ही त्योहारों की शुरुआत मानी जाती है। इसके लिए खासकर ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह अखाड़ों पर पूजन कर कुश्ती कला का प्रदर्शन के साथ विभिन्न गांव में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं खासकर करईल क्षेत्र में परसदा ,धनेठा,बाठा ,जगदीशपुर ,सुरनी, अमरूपुर, बसनिया, सियाडी़ सहित खासकर कनुवान गांव में पचईयां यानी नागपंचमी हमारे ग्रामीण अंचल का इकलौता त्यौहार था जिसकी तैयारी पूरे साल भर चलती थी, हर परिवार अपने एक युवा सदस्य को पहलवानी के लिए अवश्य तैयार करता था।उसके खान पान पर पूरे परिवार का विशेष ध्यान रहता था। उनमें से भी कुछ विशेष होते थे जिनपर पूरे गांव की निगाह होती थी। नागपंचमी के दिन जुते हुए खेत मे सब पहलवान व पूरा गांव के अलावा आसपास के गांव इकट्ठा होता था, बणिक वर्ग की दुकानें सज जाती थीं, कड़ी धूप की कोई परवाह नहीं करता था। छाता लिए लोग चार घण्टे डटे रहते थे। जमके दंगल होता था और गज़ब का अनुशासन रहता था बुजुर्गों का पूरे समय बरगत्ता बरगत्ता ,मार झोली रे की गूंज होती रहती, पहलवानों से ज्यादे तनाव में दर्शक रहते। गर्मा गर्मी होती रहती। कभी कभी तो अपने पहलवान को हारते देख लाठी भांजने को तैयार हो जाते। लेकिन सुलझे हुए बुजुर्गों की वजह से मामला निपट जाता। ये सब अब भी होता है लेकिन न वो तैयारी रहती है और न वो उत्साह बस परम्परा का निर्वहन हो रहा है।
