धर्म: भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक का कालखंड पितृपक्ष कहलाता है। इस दौरान अपने पूर्वजों के स्मरण और तर्पण का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष का समापन महालया अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या के दिन लोगों ने पिंडदान किया इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर विशेष संयोग बन रहा है। ऐसी मान्यता है कि भले ही तिथि पर पितरों को पिंडदान नहीं हो सका वे सभी अमावस्या को अपने पितरों को पिंडदान एवं तर्पण कर सकते हैं। मनुष्य को सर्वप्रथम अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए। पूर्वजों की पूजा से देवगण प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद स्वरूप जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। यही कारण है कि भारतीय समाज में बड़ों का सम्मान और मृत्यु के बाद श्राद्ध करने की परंपरा रही है। पितृपक्ष के दौरान पितृदेव स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देने आते हैं। इस अवसर पर तर्पण, पिंडदान और गंगास्नान का विशेष महत्व है। परंपरा है कि पितरों के निमित्त पकवान बनाकर अर्पित किए जाएँ। परिजनों की सेवा भाव से प्रसन्न होकर पितृदेव आशीर्वाद देकर पितृलोक को लौटते हैं। महालया अमावस्या के दिन पंचबलि की परंपरा भी है। इसमें गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन अलग निकालकर अर्पित किया गया ।
अमावस्या पर लोगों ने पितरों का किया श्राद्ध एवं तर्पण
