शेरपुर में धूम धाम से मनी श्री कृष्ण जन्माष्टमी, मुरलीधर राय के बंशजों ने की महतरियो माई की विशेष पूजा


स्थानीय ब्लॉक अंतर्गत क्षेत्र में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जगह जगह जन्मोत्सव मनाया गया, इसी क्रम में ग्राम शेरपुर में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर स्वर्गीय मुरलीधर राय के वंशजों ने महतरियो माई की पूजा की, जो श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं।

मान्यता है कि अंतिम समय में उनकी देहज्योति श्री कृष्ण के विग्रह में समा गई थी। इसी लिए जन्माष्टमी पर्व के दिन ही माता की पूजा भी की जाती है।

शेरपुर गांव में जन्माष्टमी के दिन महतरियो माई की पूजा की जाती है, जो एक विशेष परंपरा है। मुरलीधर राय के वंशज, जो महतरियो माई के भी वंशज हैं, प्रतिवर्ष इस विशेष दिन पर कृष्ण और महतरियो माई की पूजा करते हैं। इस पूजा का विशेष महत्व है, उनके बंशजों मानना है कि इस पूजा से उनकी अनिष्ट से रक्षा होती है। स्थानीय ग्रामीण अशोक राय, सतेन्द्र राय, अंजनी राय, कृष्णकांत राय, सियाराम राय, हरिशंकर राय, उमेश चंद्र राय, प्रताप नारायण राय, कमल नारायण राय ने बताया कि इसी लिए इस पूजा का विशेष महत्व है। पूजा के अगले दिन ब्रह्म भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें ब्राह्मण और गरीब जनों को श्रद्धापूर्वक भोजन कराया जाता है। भोजन के समय महतरियो माई की जय-जयकार भी की जाती है।

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार पुरातन काल में महतरियो माई स्वर्गीय मुरलीधर राय की पत्नी थीं। उनका जन्म मऊ के सहरोज गाँव में हुआ था और बचपन से ही वह बहुत सात्विक और साधु प्रवृत्ति की थीं। उनका विवाह शेरपुर में मुरलीधर राय से हुआ था। विवाह के पश्चात जब माई अपने ससुराल शेरपुर आईं, तो उन्होंने देखा कि यहाँ के परिवार जन मांस का सेवन कर रहे थे। उन्होंने अन्न जल त्याग कर दिया और अपने पिता को बुलाकर मायके चली गईं। ससुराल आने के लिए बहुत मान मनौवल करने के क्रम में जब ससुराल वालों ने मांस त्याग करने का संकल्प लिया, तब ससुराल शेरपुर वापस आईं। और तभी से मुरलीधर राय के परिवार ने मांस त्याग कर दिया और आज भी उस परंपरा का पालन उनके वंशजों द्वारा किया जाता है।

मुरलीधर राय के वंशज महतरियो माई की पूजा इसलिए करते हैं, क्योंकि वह श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं , बहुत धर्मात्मा , पुण्यात्मा तथा दानी थी।

दान तो इतना करती थी कि दरवाजे से कोई खाली न जाये, चाहे मांगने वाला, धन, वस्त्र, अन्न कुछ भी मांग ले। किम्वंदन्ती के अनुसार एक बार दान करते करते अपने शरीर का वस्त्र तक दान कर के दरवाजा बंद करके घर में बैठी थी, तभी उनके पुत्र ने किसी कार्य वश उनको पुकारा, इस बात पर उन्होंने सामने आने में असमर्थतता जाहिर की, तब उनके पुत्र ने कहा कि माता इतना भी दान न कीजिये कि तन पर वस्त्र तक न हो।

इसके बाद माता दरवाजे के भीतर ही अंतर्ध्यान हो गई। पुत्र के विलाप करने पर जन्माष्टमी तिथि पर वस्त्र , धन, भोजन इत्यादि दान करने का संकल्प लेने पर माता की आवाज आकाशवाणी से हुई थी कि पुत्र परेशान न हो मै हमेशा तुम्हारा कल्याण करूंगी, मांसाहार मत करना, पूजा, पाठ, दान इत्यादि करते रहना।

 

एक अन्य कीम्वंदन्ती के अनुसार माता जी श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी और अंतिम समय में स्वतः श्री कृष्ण विग्रह में समाहित हो गई थीं। जब माता रानी को अपने घर में उनके चार बेटों जगरदेव राय, निहाला राय, नन्दलाल राय और लक्षमण राय ने उनको घर में सशरीर नहीं पाया, तो विलाप करने लगे। तब आकाशवाणी हुई कि पुत्रों तुम लोग चिंतित न हो और मुझे खोजने की चेष्टा न करो, मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा करते हुए धन यश में वृद्धि का रास्ता सुगम करूंगी। तुम लोग कभी भी मांस का सेवन मत करना और हर साल जन्माष्टमी के दिन मुझे याद करते हुए यथा संभव दान पुण्य व्रत करते रहना। तभी से यह पूजा मुरलीधर राय के वंशजों द्वारा की जाती है।

जन्माष्टमी उत्सव में लड्डू गोपाल का श्रंगार किया जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा का प्रतीक है। इस दिन लोग भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहते हैं। मुरलीधर राय के वंशज चाहे कहीं भी रहते हों, इस दिन वे गांव आकर महतरियो माई की पूजा में जरूर शामिल होते हैं।

गाजीपुर में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें लोग भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहते हैं।

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