युवा कवि शिव कुमार पाण्डेय की हिंदी दिवस पर नयी रचना साहित्य जगाने आया हूँ


साहित्य जगाने आया हू..

नमन नयी शाखाओं को औचित्य बताने आया हूँ,

गुड़हल का मैं हूँ पराग इक पुष्प बनाने आया हूँ।

फूहड़ता में खोजे जो आनन्द उन्हीं के ख़ातिर मैं,

खेतों से उठकर भागा साहित्य जगाने आया हूँ।।

 

सब नवल नयी नवनीत कोंपलों को मेरा संदेश रहा,

हिन्दी को मजबूत बनाओ जैसे मेरा देश रहा।

मान रहा डिजिटल दुनियाँ आवश्यक है पर ध्यान रहे,

मैं डिजिटल में भी गोधुलि का लालित्य सजाने आया हूँ।।

खेतों से उठकर भागा…….

महिया दोहा और सवैया मैं ही छन्द विधाता हूँ

राजमार्ग से गावों के पगडण्डी तक मैं जाता हूँ

प्रेम,दया,वात्सलय पड़ा बिखरे मनिए के जैसा अब

इक डोरी बनकर उन मनियों को यहाँ पिरोने आया हूँ

खेतों से उठकर भागा………

जमघट में जलपान नहीं मैं शब्दपान करना चाहूँ

महाभारती की वाणी से स्नेहगान करना चाहूँ

जो सबके अन्तस में गूँजित हो स्मरण रहे अक्षर-अक्षर

मैं अडिग-अमिट मर्यादा को भी राम बताने आया हूँ

खेतों से उठकर…………..

डॉ०शिव प्रकाश ‘साहित्य’

ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश

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