वर्तमान में भाजपा कार्यकर्ताओ की हालत कुछ ऐसी है


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कुशींगर। भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता जो चुनाव के समय #पगला जाता है ऐसे कार्यकर्ता उत्तरप्रदेश में सरकार बनने और अपने विधायक के जीतने पर खुद को ही #विधायक मान बैठते हैं
फिर धीरे धीरे #सरकार जब अपनी फार्म में आती है और वही कार्यकर्ता जब एक छोटे से काम से #लेखपाल
के पास जाता है तो बिना 200 रु दिए उसका काम नहीँ होता,,
खैर वो खून का घूंट पी कर अपने #अपमान को पी जाता है,,
फिर एक दिन उसी कार्यकर्ता की #मोटरसाइकिल
#दरोगा जी पकड़ लेते हैं,, वो दरोगा जी से कहता है
कि अभी विधायक जी से बात करा रहा हूं मैं उनका बहुत #खास आदमी हूँ मैंने उनके #चुनाव में रात दिन एक कर दिया था,,,
दरोगा कहता है कराओ बात कार्यकर्ता #फोन लगाता है
घंटी जाती है विधायक जी का फोन ही नहीँ #उठता ,,, कार्यकर्त्ता भी जिद्दी वो घंटी पर घंटी लगाता रहा,,, एक लड़के की आवाज़ उधर से आई विधायक जी जरूरी मीटिंग में हैं #बंसल_जी के साथ हैं
इधर से कार्यकर्ता जब तक अपनी बात कहता तब तक मोबाइल कट,,
दरोगा जी ने 20 उल्टी सीधी कही उसका #चालान काटा या सिपाही से फिर 200 रु में #सेटिंग हुई अपमान का घूंट पीकर मोटरसाइकिल # छुड़वाई और ले के निकल लिया इधर उधर भी देखा कि किसी ने देख तो नहीँ लिया,,,
और आगे बढ़ा #विधायक जी ही गाड़ी से आते दिख गए,,
कार्यकर्ता का माथा #ठनका कि अभी तो विधायक जी बंसल जी के साथ मीटिंग में थे लखनऊ से इतनी जल्दी कैसे आ गए,,,
अब कार्यकर्ता को अपनी #औकात धीरे धीरे पता चलनी शुरू हो गई,,
पर इतनी जल्दी उम्मीद कैसे तोड़ दे अभी तो सरकार बने कुछ साल ही हुआ था,,,
वो फिर लगा रहा अचानक #संगठन में बदलाव हुआ उस कार्यकर्ता ने सोचा कि चलो अब अपने साथ के लोग संगठन के #जिलाध्यक्ष व मंडल अध्यक्ष बन गए अब अपनी सुनवाई होगी,,
एक दिन फिर एक निजी मामला #फंसा
कार्यकर्ता #सांसद जी के यहाँ गया वह तो उसे जानते भी नही थे बड़ी मुश्किल से बता पाया कि चुनाव में आपका स्वागत मेरे द्वारा ही किया गया था तब आपने हमें गले लगाया था तो तब पहचान हो सकी तो उन्होंने भी एक दो दिन के लिए टरकाया
तब तक विपक्ष के लोग कुछ सांसद के जाति के लोगों को ले जाकर अपनी सिफारिस करवा ली कार्यकर्ता को उसके घर में बहुत #जलील किया गया कि साले नेतागीरी करते हो अपना ही काम नहीँ करा पाते हो ,,,
तब कार्यकर्ता ने अपने पुराने #दोस्त से सम्पर्क किया उसने कोतवाली में जा कर इंस्पेक्टर साहब को 20000रु दिलवा कर #सेटिंग कराई तब जा कर
उसकी मदद हुई,,,
अब कार्यकर्ता को महसूस हुआ कि वो #ख़ाम_खां में नेतागीरी कर रहा काम में आया तो उसके बाप का #रुपया,,,
बस उसके बाद कार्यकर्ता के मन में आग #धधकने लगती है और वो #इंतज़ार करने लगता है #विधानसभा_चुनाव का कब चुनाव हों और कब वो अपनी #गर्मी विधायक जी पर निकाले
लेकिन जब विधायक जी चुनाव के दौरान उस कार्यकर्ता के घर उसको मनाने जाते हैं तो वो अपनी #आपबीती सुनाता है विधायक जी #गलती मानते हैं वो कार्यकर्ता फिर #बुझे_मन से चुनाव में लग जाता है लेकिन चाह कर भी पुरानी #ऊर्जा अपने अंदर नहीँ ला सकता है,,,
आने वाले समय में #भाजपा उन्ही टूटे हुए मनोबल वाले #कार्यकर्ताओं की दम पर चुनाव लड़ेगी जिनका #मनोबल पहले आसमान छू रहा था।
उनका मनोबल तोड़ा किसने #विधायकों ने, #सांसदों ने #राष्ट्रवादी उद्बोधन देकर कार्यकर्ताओं को खड़ा करने वाले संगठन के वरिष्ठ नेताओं ने जो खुदआनन्द के साथ अपना काम तो साध लेते हैं और कार्यकर्ताओं के लिए असहाय हो जाते हैं हो सकता है कि सभी की स्थिति ऐसी न हो किन्तु कमोबेश निचले पायदान पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की ऐसी ही हालत है।

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