नगर पंचायत अमिला के ईओ करते हैं आनलाइन ड्यूटी रहते हैं गाजीपुर


ईओ अमिला गाजीपुर रहते हैं, करते हैं आनलाइन नौकरी

मऊ- सरकार का फरमान है कि अधिकारी अपने सर्किल क्षेत्र में ही रहेंगे, लेकिन अमिला नगर पंचायत ईओ मनोज यादव सर्किल तो छोड़िए, जिला मुख्यालय पर भी नहीं वह गाजीपुर के जखनियां से आनलाइन ड्यूटी करते हैं । बताया जाता है कि ईओ साहब का परिवार जनपद गाजीपुर में रहता है। चुंकि पत्नी शिक्षक हैं और ससुर जी कई विद्यालय चलाते हैं इसलिए साहब क्या करें इनकी भी मजबूरी है आनलाइन ड्यूटी करना।अब सरकार का क्या वह तो बस फरमान जारी कर देती है और सामने वाले की मजबूरी देखती ही नहीं है।इस प्रकार यदि साहब की मोबाइल का काल डिटेल निकाला जाए तो पता चलेगा साहब महीने में शायद दो बार भी आफिस आए हों,ऐसी स्थिति में सब कुछ मनमाना चलता है।सूत्र
बताते हैं कि सरकार द्वारा हो रहे विकास कार्यों के लिए जारी बजट का 30% भाग कमीशनखोरी की भेंट चढ़ता है शेष 70% में ठेकेदार काम कराकर अपने भी बचाता है। मतलब साफ है कि सरकार का आधा पैसा मोटी चमड़ी वाले बाबुओं और जिम्मेदार अधिकारियों की भेंट चढ़ता है। सरकार एक ओर तो भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बात करती है लेकिन दूसरी निर्माण कार्य में खुलेआम लूट होने ‌से दोयम दर्जे का कार्य हो रहा है जिससे सड़कें हों या नाली एक वर्ष भी सही ढंग से नहीं चल पा रही हैं।इस संबंध में जनपद मऊ के प्रभारी मंत्री गिरीश चंद यादव जी से जनपद के विकास की समीक्षा के अवसर पर पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जो निर्माण करने वाली फर्में या ठेकेदार हैं उनकी जिम्मेदारी है कि रोड को एक नियत समय सीमा के अंदर यदि छतिग्रस्त होता है तो पुनः निर्माण कराएंगे।सवाल है जब 50% लागत से रोड बनेगा तो उसकी गुणवत्ता भी तो उतनी ही रहेगी इसके बाद यदि छतिग्रस्त होता है तो क्या ठेकेदार अपना घर बेंचकर उसको बनवाएगा? बहरहाल घूसखोरी का तो कोई रिकॉर्ड है नहीं और यदि शिकायत होती है तो यही अधिकारी जांच अधिकारी होते हैं और 2,4% मात्र छोटी रकम लेकर बेचारे ठेकेदार के पक्ष में मानक के अनुरूप रिपोर्ट लगाकर भेज देते हैं और मामला यदि गहराई तक फंस जाता है तो ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड और मुकदमा करके अपने को बहुत बड़े ईमानदार बन जाते हैं। ऐसे में देखा जाए तो उत्तर प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नियत को यह जिम्मेदार‌ अधिकारी पलीता लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।इस मामले में नगर पंचायत अमिला इन दिनों सुर्खियों में है।यहां तक कि नगर पंचायत अमिला में बिना टेंडर कराए ही काम पहले हो जा रहा है और टेंडर पांच महीने बाद होता है। जिसका साक्ष्य उपलब्ध है।ऐसी स्थिति में ईओ साहब की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है।साथ ही सूत्र बताते हैं ईओ साहब के ससुर जी एक पार्टी से रसूख रखने हैं और कई विद्यालयों के मालिक हैं जिनके इकलौते दामाद होने के कारण साहब को उनकी भी जिम्मेदारी संभालनी पड़ती है।साथ ही जिस पार्टी से साहब के रसुर रसूख रखते हैं उस पार्टी के कार्यकर्ताओं की मीटिंग का खर्चा मधुबन विधानसभा में होने वाली बैठकों का साहब ही उठाते हैं जिसकी सूचना एक व्यक्ति ने दी जिसकी रिकार्डिंग उपलब्ध है। बहरहाल साहब पर बहुत जिम्मेदारी है। शायद इसी वजह से वह आफिस न आकर आनलाइन ड्यूटी करते हैं। बहरहाल सवाल यह है कि जब नगर विकास मंत्री का खुद अपना जिला है तो साहब किसकी सह पर इतना सबकुछ कर लेते हैं।

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