लक्ष्मण मंदिर बेलौली सोनबरसा के बहुरेंगे दिन


राम मंदिर के बाद अब लक्ष्मण मंदिर के दिन बहुरने के आसार

नगर विकास मंत्री एके शर्मा जाएंगे दर्शन करने।

पर्यटन स्थल बनाने के लिए एके शर्मा ने पहले से ही भेजा है प्रस्ताव

Repor by- Praveen Rai

मऊ- जनपद मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित दोहरीघाट-मधुबन मार्ग पर स्थित बिलौली धाम सोनबरसा में विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण जी का मंदिर विराजमान है। पूर्वज बताते हैं कि इस पूरे क्षेत्र को छोटी अयोध्या के नाम से जाना जाता है। जहां एक तरफ दोहरीघाट को भगवान राम और भगवान परशुराम के मिलन स्थली के रूप में दो हरियों के घाट से इसका नाम दोहरीघाट पड़ा, वहां से 6 किलोमीटर दूरी पर रसूलपुर स्टेट के नामक जगह पर अंधी-अंधा कुंड बना है। ऐसा पौराणिक कथाओं में आता है कि यहीं पर श्रवण कुमार के अंधे मां बाप ने अपना प्राण छोड़ा था।उसे 2 किलोमीटर आगे सूरजपुर स्थित सरछोड़ा नामक जगह है जो आज सरफोरा के नाम से जाना जाता है,पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शिकार करते हुए यहीं से अपना बांण(सर) छोड़ा था। जो श्रवण कुमार को लगा था। जिसके बाद श्रवण कुमार का प्राणांत हुआ था। जो आज भी अंधरा कुंड यहां पर स्तिथ है।बनअवध क्षेत्र और राजा नहुष की नगरी घोसी भी यहीं स्थित है।रामचरितमानस में तुलसीदास ने अयोध्या का वर्णन करते हुए लिखा है कि “उत्तर दिश सरजू बहें पावन” तो यहां पर भी पतित पावनी मां सरजू उत्तर दिशा में प्रवाहित होतीहैं।
इस प्रकार देखा जाए तो यह पूरा क्षेत्र धार्मिक दृष्टिकोण से पौराणिक अयोध्या नगरी के समकालीन पौराणिक स्मृतियों और धार्मिक स्थलों को समेटे हुए त्रेतायुगीन कथाओं को अक्षरशः साबित करती हैं।त्रेता युग के अंतिम चरण में रामलीला के आखिरी चरण में लक्ष्मण जी के प्राणांत की कथा कहती है कि जब असुरों का संहार करके प्रभु राम अयोध्या आए तथा माता सीता के साथ वह कक्ष में विश्राम कर रहे और रामचंद्र जी ने लक्ष्मण जी को आदेशित किया था।जब तक मैं ना कहूं तब तक मेरे कक्ष में कोई आना नहीं चाहिए यदि कोई आता है तो वह सशरीर पृथ्वी में समाहित हो जाएगा। ऐसी आज्ञा देकर लक्ष्मण जी को गेट पर दरबानी करने के लिए लगा दिए थे। तब तक दुर्वासा ऋषि आए और जिद करने लगे कि मुझे अभी श्रीराम से मिलना है और लाख अनुनय-विनय के बाद भी जब न माने तो लक्ष्मण जी ने सोचा कि श्रषि के श्राप से अच्छा है प्राणांत हो जाए। चुंकि यह लीला में भी शामिल था कि मनुष्य तन को छोड़ना था।इसलिए गुरु अवज्ञा के कलंक से बचने के लिए में वह जैसे ही रामचंद्र जी के सामने कक्ष में जाते हैं। सशरीर पृथ्वी में समाहित होने लगते हैं। यह देखकर श्री रामचंद्र जी के मुख से निकला था हाय लक्ष्मण तूने यह क्या किया? और किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में श्री रामचंद्र जी की चेतना तब आई जब लक्ष्मण जी का पूरा शरीर पृथ्वी में समाहित हो गया था सिर्फ सर बचा था अंत्येष्टि करने के लिए उन्होंने सर पर हाथ रखा और सर के ऊपरी भाग का हिस्सा उनके हाथ में आने के बाद लक्ष्मण जी का अंतिम संस्कार किया गया। साथ ही उन्होंने कहा कि कलयुग में सशरीर आप अवतरित होंगे और अपने भक्तों का कल्याण करेंगे।

“लक्ष्मण जी का प्रकाट्य”

ऐसा बताया जाता है कि लगभग 200 साल पहले रसूलपुर स्टेट के राजा केशव प्रताप नारायण सिंह के खेत में उनके हलवाहे हल जोत रहे थे कि इस समय हल फाल से एक पत्थरनुमा वस्तु टकराई और खून का फाफड़ा निकल गया। यह देख घबराकर हलवाहे वहां से भाग गए लेकिन वहीं पर दयाल नामक एक व्यक्ति ने उस जगह को खोदकर निकाला जिसमें लगभग डेढ़ फुट की अष्टधातु की लक्ष्मण जी की मूर्ति निकली जिसको अपने कंधे पर रखकर घूमने लगे और उनको स्थापित करने के लिए जगह-जगह जमीन मांगने लगे ऐसा बताया जाता है,कि वह मूर्ति को स्थापित करने के लिए रसूलपुर के राजा केशव प्रताप नारायण सिंह के पास भी गए लेकिन उनको पागल समझकर दरवानों ने गेट से ही भगा दिया। इसके बाद उनके गांव से बाहर जाते ही पूरे गांव में ब्रह्माग्नि लग गई। फिर राजा को जब पूरी बात बताई गई तो वह दयालु को बुलाकर सारी बात जाने और जिस स्थान पर मूर्ति निकली थी वहीं पर 52 बीघा जमीन लक्ष्मण कुटी को दान देकर राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया,जो आज भी लोगों के आस्था का केंद्र और विश्वास का केंद्र है। ग़ौरतलब है कि जब यह मूर्ति जमीन से अवतरित हुई थी तो उस समय इसका आकार मात्र डेढ़ फुट का था जिसको कंधे पर लेकर दयालु साधू घूमा करते थे, साथ ही इस मूर्ति के सर पर गड्ढा है जिसको हमेशा मुकुट से ढका रखा जाता है इसके संबंध में पौराणिक कथाएं लक्ष्मण जी के अंतिम समय को जोड़ती हुई बताती है कि अंत्येष्टि के लिए लिया गया सर का उनका भाग आज भी उनकी खोपड़ी में गड्ढे के निशान के रूप में मौजूद है।साथ ही अष्टधातु से बनी यह मूर्ति अब एक विशालकाय मूर्ति के रूप में तब्दील हो गई है जो श्रद्धालुओं के लिए दिव्यता और आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

“यहां मांगी मुरादें अवश्य होती हैं पूरा”
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ऐसा बताया जाता है कि इस क्षेत्र में जिसके यहां भी कोई मांगलिक कार्य होता है लक्ष्मण जी के स्थान पर जाकर कथा(पूजा)अवश्य कराता है, साथ ही जिसकी मनौती पूरा होती है,यहां पर भंडारा देता है। ऐसा बताया जाता है कि 12 महीने में कोई ऐसा दिन नहीं होता जब यहां पर भंडारा ना होता हो यहां पर रहने वाले साधु संत भंडारे का प्रसाद लेते हैं साथ ही यहां पर पुराने समय में हाथी और घोड़े भी हुआ करते थे जो अब मात्र उनके रहने का स्थान दिखाई देता है। साथ ही बड़ी गौशाला के रूप में यहां पर पहले स्थित थी इसके संबंध में यह भी कहा जाता है कि जिसके गाएं यदि गर्भ धारण नहीं करती‌ या दूध नहीं देती हो तो यहां पर बांध देने के बाद वह दूध देने लगती हैं,जो आज भी बहुत सारी गाएं यहां पर गौशाला मौजूद हैं,जिसके दूध से बनी खीर लक्ष्मण जी महाराज को भोग प्रसाद के रूप में प्रतिदिन सुबह और शाम चढ़ाई जाती है।

“पौराणिक मंदिर के जिर्णोद्धार की है आवश्यकता”

सैकड़ों वर्ष पुराना यह मंदिर बहुत ही भव्य बना हुआ है जो अब धीरे-धीरे जिर्ण होता जा रहा है। हांलांकि समय-समय पर इस मंदिर में आस्था रखने वाले श्रद्धालु इसका जिर्णोद्धार कराते रहते हैं। परंतु अब इस मंदिर को नए सिरे से बनवाने की आवश्यकता देखी जा सकती है। क्योंकि यहां की ईंटें काफी पुरानी होने के कारण मंदिर के ढहने का डर बना रहता है।इसके बगल में बसे बेलौली नामक गांव में निषाद समाज के लोग रहते जो रामचंद्र जी के मित्रवत संबंध के रूप में श्री रामचरितमानस में वर्णित हैं।

“विश्व में लक्ष्मण जी का अकेला ऐसा मंदिर है जिसमें सिर्फ लक्ष्मण जी की मूर्ति स्थित है”

जी हां आप पूरे विश्व में कहीं भी अकेले लक्ष्मण जी की मूर्ति नहीं देखेंगे निश्चित रूप से उनके साथ प्रभु श्रीराम और माता सीता विराजमान रहती हैं। लेकिन पहली यह ऐसी मूर्ति है जहां सिर्फ लक्ष्मण जी की अकेले मूर्ति विराजमान है। ऐसा माना जाता है कि चुकीं लक्ष्मण जी कलयुग में वरदान स्वरूप अवतरित हुए हैं‌ इसलिए उनकी इकलौती मूर्ति यहां विराजमान है।यह आसाढ़ मास में हर गुरुवार को लगातार तीन बराम(बार)‌पचईं,छठईं,सतईं बराम को मेला लगता है।

“हर 50 वर्ष बाद मां सरजू आती है चरण स्पर्श करने।”

बुजुर्ग ऐसा बताते हैं कि लक्ष्मण मंदिर से सटे उत्तर दिशा में प्रवाहित माता सरजू हर 50 वर्ष बाद लक्ष्मण जी का चरण स्पर्श करने अवश्य आती हैं।ऐसा कथाओं में कहा जाता है कि हर 50 वर्ष बाद सरजू नदी में भयंकर बाढ़ आती है जिससे समूचा क्षेत्र डूब जाता है,कोई लाख जतन कर ले लेकिन लक्ष्मण मंदिर में पानी अवश्य घुसता है और माता सरजू लक्ष्मण जी का जैसे ही चरण स्पर्श करती हैं इसके बाद धीरे-धीरे पानी कम होने लगता है और नदी पुनःअपने स्थान पर चली जाती हैं इसका जीता-जागता उदाहरण वर्ष सन् 1996 में स्पष्ट रूप से देखा गया कि सन् 1996 में सरजू नदी में भयंकर बाढ़ आई बांध तट पर कितना भी होल्डर गिराया गया लेकिन उसको तोड़ते हुए मां सरजू मंदिर के चौखट में प्रवेश कर लक्ष्मण जी का जैसे ही चरण स्पर्श की उनका पानी धीरे-धीरे घटने लगा।

“नगर विकास मंत्री एके शर्मा से जगी आस! बहुरेंगे लक्ष्मण कुटी के दिन”

उत्तर प्रदेश सरकार के नगर विकास एवं ऊर्जा मंत्री एके शर्मा का पहली बार आगमन इस मंदिर पर 13 अप्रैल को होने जा रहा है।ज्ञात हो कि इस मंदिर को पर्यटन स्थल घोषित करने के लिए मंत्री बनने से पहले ही एमएलसी रहते हुए एके शर्मा ने दिया था परन्तु फाइल कहां अटक गई है इसका पता नहीं चल पाया आज जब इस मंदिर के बगल में निषादराज की जयंती के अवसर पर  जब मंत्री एके शर्मा का आगमन होने जा रहा है तो लोग यही कह रहे हैं कि अब लक्ष्मण कुटी के दिन बहुरने के आसार दिखाई देने लगा है।

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