ग्रामीण क्षेत्रों में वामन जयंती धार्मिक आस्था से मनाया गया। वामन जयंती पर महिलाओं ने व्रत रख भगवान वामन की पूरे श्रद्धा भाव से कथा सुन परिवार के कल्याण की कामना की। इस सम्बन्ध में पंडित हृर्षिकेश तिवारी ने बताया कि भगवान वामन का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ था, और यह शुभ दिन श्रवण नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त में मनाया जाता है। इसे वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। वामन भगवान विष्णु के दशावतार में से पांचवे और त्रेता युग के पहले अवतार थे। साथ ही वह भगवान विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मनुष्य के रूप में प्रकट हुए। वामन जयंती केवल भगवान विष्णु के अवतार की याद नहीं दिला शास्त्र के अनुसार, इस व्रत को करने से संतान सुख, धन की वृद्धि और पापों का क्षय होता है। श्रीमद् भागवत पुराण में भगवान वामन की कथा प्रसिद्ध है, देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने वामन (एक बौने ब्राह्मण) के रूप में अवतार लिया। राजा बलि देवताओं को पराजित करने के बाद एक यज्ञ कर रहा था, तब भगवान वामन बालक ब्राह्मण रूप में महाबली के यज्ञ स्थल पर पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी।शुक्रचार्य को पहले ही आभास हो गया था और उन्होंने राजा बलि को वचन ना देने के लिए कहा था। लेकिन राजा बलि नहीं माने और उन्होंने ब्राह्मण को वचन दिया कि तुम्हारी यह मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। बलि ने हाथ में गंगा जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया।संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और विकराल रूप धारण कर लिया। उन्होंने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्ग तथा तीसरे पग में दैत्यराज बलि ने अपना मस्तक प्रभु के चरणों के आगे रख दिया। अपना सबकुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से ना हटते देख भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने दैत्यराज को पाताल का अधिपति बना दिया। इस कथा का मुख्य उद्देश्य राजा बलि के अहंकार का नाश करना और धर्म की पुनः स्थापना करना था।
राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए वामन ने तीन कदमों में तीनों लोक नाप दिया – पंडित हृषिकेश तिवारी
