हर्षोल्लास के साथ मनाया गया ईद-ए मिलाद उन नबी


सेवराई तहसील क्षेत्र में शुक्रवार को ईद-ए मिलाद उन नबी हर्षोल्लाश के साथ मनाई गई।क्षेत्र के गोड़सरा गांव के जमा मस्जिद के इमाम फैज अहमद रिजवी और छोटी मस्जिद के इमाम कारी अहमद रजा खान की रहनुमाई में जुलूसे मुहम्मदी निकला गया।यह जुलूस बड़ी मस्जिद से शुरू हुआ और पश्चिम मोहल्ला खलिहान होते हुए बड़ा दरवाजा,आठों घर के दरवाजा,उत्तर मोहल्ला होते हुए पूरे गांव का भ्रमण करते हुए छिपा शहीद दादा के मजार पर सलातो सालम और फातेहा खानी के बाद संपन्न हुआ। जुलूस में छोटे छोटे बच्चे हाथों में इस्लामिक झंडा लहराते हुए और बैनर लेकर घूम रहे थे। पत्ता पत्ता फूल फूल,या रसूल या रसूल के नारे भर रहे थे।लब्बैक लब्बैक या रसूल की नारो से पूरा गांव गूंज उठा।जगह जगह पर लोगो ने शरबत,मिठाई,फल,खजूर का सिरनी जुलूस में शामिल लोगों को बांटा गया।

यह दिन दुनिया भर के मुसलमानों के लिए बहुत ज्यादा अहमियत रखता है, जिसे हर साल रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाया जाता है।

इस दिन इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब दुनिया में आए थे। हर साल रबी-उल-अव्वल महीने की 12वीं तारीख को यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ एक जश्न का दिन नहीं, बल्कि नबी की सीरत, उनकी तालीमात और उनके लाए हुए पैगाम को याद करने का भी दिन है।

भारत के कई हिस्सों में 24 अगस्त 2025 को रबी-उल-अव्वल का चांद देखा गया, जिसके बाद ईद-ए मिलाद उन नबी की तारीख 5 सितंबर तय की गई थी।

अल्लाह के नबी पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म लेने और उनकी मृत्यु दोनों की दिन एक ही है और वो दिन है 12 रबी-उल-अव्वल. इसी दिन वे दुनिया में आए और उसी दिन उन्होंने इस दुनिया से पर्दा लिया। पैगंबर मुहम्मद साहब की पैदाइश लगभग 570 ईस्वी में मक्का में हुई थी। वहीं, लगभग 632 ईस्वी में मदीना में उनका इंतकाल हुआ था।उनके आमद का दिन ईद-ए मिलाद उन नबी कहलाया और दुनिया से पर्दा लेने का दिन बारह वफात कहलाया। आपको बता दें कि मिलाद उन नबी जश्न का होता है, लेकिन बारह वफात का नहीं।

मिलाद का मतलब है ‘पैदा होना’ और ‘नबी’ यानी पैगंबर मुहम्मद साहब. ऐसे में मिलाद-उन-नबी का मतलब हुआ नबी की पैदाइश का दिन. इस दिन मुसलमान नबी की जिंदगी, उनकी रहमत, उनकी उनकी तालीम को याद करते हैं. इस दिन बहुत से मुसलमान पैगंबर मुहम्मद साहब के जन्मदिन का जश्न मनाते हैं. कुछ लोग इसे सिर्फ जश्न-ए-मिलाद कहते हैं तो कुछ जगह ईद-ए-मिलाद नाम से भी मनाया जाता है।

जमा मस्जिद के इमाम फैज अहमद रिजवी ने बताया कि मुसलमानो को नबी की पैदाइश इंसानियत के लिए रहमत-ए-आलम है। इस दिन महफिलें सजाई जाती हैं, कुरान की तिलावत की जाती है, नात-ए-पाक पढ़ी जाती हैं और लोगों को नबी की सीरत से वाकिफ कराया जाता है।मिलाद उन नबी का असल मकसद है कि लोग मुहम्मद साहब की जिंदगी से सबक लें और उनकी तालीम को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं।

जुलूस मुहम्मदी में मुख्य रूप से मिनहाज खान,मुमताज खान,लड्डन खान,कैफ खान,सुऐब खान,फिरोज खान,सद्दाम खान,मुदस्सर,तबरेज, फिरदौस,फख्रएआलम,खान सहित गांव के गणमान्य एवं बच्चों सहित सैकडो की संख्या में लोग मौजूद रहे।

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